प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले।।
कुरूक्षेत्रे तु यत्पुण्यं राहुग्रस्ते दिवाकरे।
तत्फलं लभते देवी चक्रतीर्थस्य मज्जनात्।।
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यह समिति आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80जी के अन्तर्गत आयकर मुक्त

नैमिषारण्य धाम में स्वामी अय्यप्पा आश्रम हरिहर महाक्षेत्र की स्थापना

नैमिषेऽनिमिषक्षेत्रे ऋषयः शौनकादयः।
सत्रं स्वर्गाय लोकाय सहस्त्रसममासत्।।

प्रस्तावित निर्माण

सिद्ध विनायक लक्ष्मी नारायण सत्संग गौशाला सेवा समिति द्वारा तपोस्थली नैमिषारण्य धाम में स्वामी अय्यप्पा आश्रम हरिहर महाक्षेत्र की स्थापना की जा रही है। जिसमें सिद्धि विनायक मन्दिर, स्वामी अय्यप्पा मन्दिर, स्वामी सत्य नारायण मन्दिर व सत्संग भवन तथा धर्मशाला आदि का निर्माण किया जा रहा है जिसकी अनुमानित दान धनराशि लगभग 15 करोड़ आयेगी। मन्दिर आदि निर्माण में आप श्रद्धेय लोगो से सहयोग की आवश्यकता है। नैमिषारण्य धाम में मन्दिर आदि निर्माण में अधिक से अधिक सहयोग करने व करवाने की कृपा करे और परम पुण्य के भागीदार बनें।

प्रधान कार्यालय : -

सिद्ध विनायक लक्ष्मी नारायण सत्संग गौशाला सेवा समिति उत्तर वार्ड - २, नैमिषारण्य धाम जनपद सीतापुर, उ0 प्र0 - 261402 (निकट पुराना चौराहा)

सम्पर्क सूत्र - अमित पाराशर मो0 - 9936101101 , 9935173290

                      राजेश तिवारी मो0 - 9336646655, 7317008646

ईमेल आईडी - amitnaimisharanya@gmail.com
                        rajeshtiwari6655@gmail.com

शाखा कार्यालय : -

1. मुंबई कार्यालय : रूम नं0 - 11 , प्रथम तल जोगेश्वरी माता हाउसिंग सोसाइटी साईसिद्ध शंगुल जयकोठ जोगेश्वरी ईस्ट मुंबई (महाराष्ट्र)-400060 निकट बाला साहेब ठाकरे ट्रामा सेन्टर

नाम : श्री संदीप गोपाल शर्मा

मोबाइल नं 0 : +91 - 9892792583

2. ओंगोल कार्यालय भ्रष्टाचार व वित्तीय अनियमितता के कारण पूर्ण रूप से बन्द किया जा रहा है। किसी भी प्रकार के लेन-देन के लिए संस्था जिम्मेदार नहीं होगी। किसी भी प्रकार की कोई सहायता के लिए प्रधान कार्यालय नैमिषारण्य से सीधा संपर्क करें।

निवेदन

इच्छुक श्रद्धालु भक्तगण अथवा धर्मसेवी संस्थाये सहयोग दान धनराषि के रूप में भेंट करना चाहें अथवा अपने एंव पितरो के निमित्ति मन्दिर आश्रम व धर्मार्थ यात्री निवास में कमरा आदि निर्मित कराना चाहें तो सम्बन्धित दान राशि डी0डी0 चेक नगद या ड्राफ्ट क्रेडिट कार्ड संस्था के S.B.I A/C No. 32454961471 (IFSC Code- SBIN0014929) में सीधे जमा कर जमा रसीद की छाया प्रति, अपना नाम, पिता का नाम, अपना गोत्र, पत्र व्यवहार का पूर्ण पता,स्थान,जिला, राज्य, देश, व मोबाईल न0 अपना पी0एन0टी0 नं0 के साथ लिखकर निम्न लिखित समिति के नाम पर भेज सकते है। सेवा राशि प्राप्त होने पर दान रसीद तत्काल भेज दी जायेगी।

नैमिषारण्य में दान का महत्व

पुराणों में नैमिषारण्य क्षेत्र में दान के लिए विस्तृत चर्चा की गई है जिनमें मुख्य रूप से गोदान, भूमि दान, अन्नदान स्वर्णदान, रजतदान, वृक्षदान, भवन दान, शय्यादान आदि स्वयं एवं पितरों के निमित्त किये जाते है। इस प्रकार के दान से मनुष्य को यज्ञ का फल प्राप्त होता है और उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। प्रस्तुत श्लोक से यह बात स्पष्ट होती है।

कूर्मपुराण

अत्र दानं तपस्तप्तं श्राद्धयागादि क´्च यत।
एकैकं नाशयेत् पापं सप्त जन्मकृतं तथा।।
अत्र प्राणान् परित्यज्य नियमेन द्विजातयः ।
ब्रह्मलोकं गमिष्यन्ति यत्र गत्वा न जायते।।

स्वामी अय्यप्पा कथा

सतयुग में रम्ब और करम्ब नामक दो दैत्य थे। रम्ब का पुत्र महिषासुर करम्ब की पुत्री महिषी थी। महिषी का जन्म लीलावती को दत्तात्रेय के शाप के कारण हुआ था। महिषासुर के आतंक से तीनो लोकोे को मुक्त करने के लिये चण्डिका देवी ने महिषासुर का बध कर दिया महिषी ने अपने भाई महिषासुर के वध का प्रतिषोध लेने के लिये ब्रम्हदेव की घोर तपस्या की। ब्रम्हदेव ने महिषी की तपस्या से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा महिषी ने अमर होने के उद्देष्य से वर मांगा कि मेरी मृत्यु हरिहर पुत्र से हो। ब्रम्हा जी के द्वारा वरदान प्राप्त कर महिषी ने देवगणों को घोर यातनाएं देने लगी। देवराज इन्द्र द्वारा महर्षि दुर्वासा को छल व उपेक्षा से अपमानित होकर दुर्वासा ऋषि ने इन्द्रादि देवताओ को शाप दे दिया कि जिस तेज और बल के घमण्ड में तुम चूर हो वह तुरन्त नष्ट हो जाये। समस्त देवों की क्षमा याचना करने पर दुर्वासा ऋषि ने उपाय बताया। कि अमृत पान से तुम्हारा तेज व शक्तियां वापस प्राप्त होगी। समुन्द्र मन्थन से अमृत प्राप्त हुआ। जिसे लेकर दानव भाग गये देवों को अमृत पान के उद्देष्य से भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके देवों को अमृत पान कराया। मोहिनी अवतार के दर्शन करने भगवान शिव वहा पधारे। तब महिषी के आतंक से देवगणों को बचाने के लिये श्रीहरि के अंश करूणा और शान्ति शिव के अंश से ध्यान, ज्ञान, और वैराग्य आदि एक होकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन उत्तरा नक्षत्र में ज्योति स्वरूप हरिहर पुत्र स्वामी अय्यप्पा का अवतरण हुआ। भगवान शिव ने स्वामी अय्यप्पा के गले में मणि माला पहनाकर पंपा नदी के किनारे छोड़ दिया। पंदल राज्य के राजा राज शेखर शिकार खेलते हुये पंपा नदी के पास पहुचें वहां शिशु के रोने की आवाज को सुनकर राजा वहां पहुंचे वह सुन्दर प्रकाशवान और मणिमाला धारण किये हुये शिशु को देखा। राजा के कोई संतान नही थी। राजा तेजवान शिशु को पाकर बहुत प्रसन्न हुये। मणिमाला धारण किये होने से उसका नाम मणिकण्ठ रखा तथा और उसे अपने साथ राज महल ले आये और रानी को सारी घटना बताई। रानी तेजवान शिशु की प्राप्ति से बहुत आनन्दित हुई और मणिकण्ठ के आगमन से राज्य में सुख समृद्धि व्याप्त हुई। कुछ समय पश्चात रानी ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राज राजन रखा। राजा ने मणिकण्ठ को राज्य के सुयोग्य उत्तराधिकारी समझकर युवराज बनाने का निर्णय किया। किन्तु महामंत्री ने राज्य हथियाने के लिये रानी और राज वैद्य को मिलाकर एक षड्यन्त्र रचा। रानी ने तीव्र सिर दर्द होने का बहाना बनाया और राज वैद्य ने कहा रानी का सिर दर्द सिर्फ पुत्र द्वारा बाघिन का लाया हुआ दूध ही ठीक कर सकता है। तब स्वामी अय्यप्पा माॅ के इलाज के लिये दूध लाने के लिये अपने सिर पर दो इरूमुड़ि (गठरी) रखकर धनुष धारण कर वन गये। वहां देवगणों ने स्वामी अय्यप्पा से महिषी के आतंक और यातनाओं से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की स्वामी अय्यप्पा ने महिषी से युद्ध कर महिषी का वध किया। महिषी का भैंस रूपी शरीर लुप्त होकर एक सुन्दर कन्या के रूप में परिवर्तित हो गयी। उस कन्या ने स्वामी अय्यप्पा से विवाह करने की विनती की किन्तु स्वामी अय्यप्पा ने उसका आग्रह अस्वीकार कर दिया और कहा जिस वर्ष कोई कन्नि स्वामी नही आयेगा उस वर्ष मै तुमसे विवाह करूगां। इसलिये आज तक महिषी मालिग पुरत्तु अम्मन (हल्दी माता) के रूप में प्रतिक्षा कर रही है। महिषी के वध से समस्त देवगण प्रसन्न हुये स्वामी अय्यप्पा ने देवगणों से अपनी माता के विषय में कहा तब देवतागण बाघ तथा देवियां बाघिन का रूप धारण कर लिया। स्वामी अय्यप्पा बाघ पर चढकर पंदल राज्य लौटे। राजा को सभी के षड्यन्त्र का पता चला तब सभी ने राजा से षड्यन्त्र की क्षमा मांगी। उसी समय स्वामी अय्यप्पा बाघ पर बैठ कर पंदल राज्य वापस आये उन्हे समस्त घटना क्रम का ज्ञान होने पर उन्होने राज्य त्याग कर तीर्थ यात्रा का विचार बनाया और पिता से राज्य से विदा लेने की आज्ञा मांगी। स्वामी अय्यप्पा तीर्थो का दर्शन करतेे हुये नैमिषारण्य पधारे और ऋषियो ने उनको उपदेश दिया इधर देवगणों ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को मन्दिर निर्माण करने को कहा। इस सन्दर्भ मे परशुराम ने शिल्पकार के रूप में प्रधान विग्रह को बनाया तथा 18 देवगणो के दर्शन करवाने के लिये 18 सीढियां बनाई। हर वर्ष स्वामी अय्यप्पा मकर संक्राति के दिन सूर्यास्त के समय ज्योती के रूप में दर्शन देकर वरदान देते है।

ज्योतिष एवं वास्तु

अमित पाराशर
ज्योतिषाचार्य
- 9936101101, 9935173290

जन्म कुंडली,प्रश्न कुंडली एवं वास्तु दोष सम्बंधित समस्त समस्याओं का समाधान व कुंडली निर्माण, रत्न धारण, गृह दोष, पितृ दोष, कालसर्प दोष एवं विविध कष्ट निवारण अनुष्ठान विधिपूर्वक संपन्न किये जाते हैं |


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सुविधायें

श्रीमदभागवत कथा, राम कथा, श्रीसत्यनारायण व्रतकथा, समस्त धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजन आदि आयोजनों के लिए सत्संग भवन ठहरने हेतु एयर कंडीशनर (ए0 सी0) व सामान्य स्वच्छ अटैच कमरे की उत्तम व्यवस्था है |

तीर्थदर्शन हेतु (ए0 सी0) व (नॉन ए0 सी0) वाहनों की सुविधा साथ में एक मार्गदर्शक एवं योग्य पुरोहित की व्यवस्था

नैमिषारण्य ८४ कोषीय परिक्रमा के लिए संपर्क करें

सेवायें

गौ सेवा - गउवों के रहने के लिए भवन निर्माण एवं चारा हेतु गौ सेवा,

अन्नदान सेवा - ब्राह्मणों , साधू संतो , कन्याओं एवं गरीबों के लिए अन्नदान सेवा,

भवनदान सेवा - तीर्थ यात्रियों, श्रद्धालुओं एवं गरीब निराश्रित व्यक्तिओं के निवास तथा पित्रों की स्मृति में भवन एवं धर्मशाला निर्माण हेतु भवनदान सेवा |

सम्पर्क सूत्र - अमित पाराशर मो0 -
                     9936101101 , 9935173290

                     राजेश तिवारी मो0 - 9336646655

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