प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले।।
कुरूक्षेत्रे तु यत्पुण्यं राहुग्रस्ते दिवाकरे।
तत्फलं लभते देवी चक्रतीर्थस्य मज्जनात्।।
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नैमिषारण्य

नैमिष अथवा नैमिषारण्य तीर्थ भारत वर्ष के प्रमुख तीर्थों में से एक तीर्थ है। यह भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के समीप जनपद सीतापुर में प्रसिद्ध गोमती नदी के तट पर स्थित है यह अठ्ठासी हजार ऋषियों की तपस्थली होने के कारण तपोभूमि के नाम से विख्यात है। आदिकाल में देवताओं की यज्ञ स्थली होने से इसे यज्ञ भूमि के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में इसे धर्मारण्यं कह कर भी सम्बोधित किया गया है।

प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले।।
तीरथ वर नैमिष विख्याता
अति पुनीत साधक सिधि दाता।।

नैमिष अथवा नैमिषारण्य तीर्थ भारत वर्ष के प्रमुख तीर्थों में से एक तीर्थ है। यह भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के समीप जनपद सीतापुर में प्रसिद्ध गोमती नदी के तट पर स्थित है यह अठ्ठासी हजार ऋषियों की तपस्थली होने के कारण तपोभूमि के नाम से विख्यात है। आदिकाल में देवताओं की यज्ञ स्थली होने से इसे यज्ञ भूमि के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में इसे धर्मारण्यं कह कर भी सम्बोधित किया गया है।

तीर्थानां परमं तीर्थं धर्मारण्यं प्रचक्षते।
ब्रह्म विष्णु शिवद्यैर्यदादौसंस्थापितं पुरा।।

इसके अतिरिक्त पूर्वकाल में यहीं से धर्मचक्र का प्रवर्तन आरम्भ हुआ था। यथा.

यत्र पूर्वाभिसगवैधर्म चक्रं प्रवर्तितम।
नैमिषे गोमती तीरे तत्रनागाहृयंपुरम।।

भगवान धर्मराज द्वारा यहाँ 30 हजार वर्षों तक कठिन तप किया गया जिससे प्रसन्न होकर आदि देव भगवान शिव ने वर दिया कि यह स्थान युगों.युगों तक तुम्हारे नाम से विख्यात रहेगा। अतः इसे धर्मारण्यं नाम से जाना जाता है। पुराणों में नैमिषारंण्य की महत्ता अधोलिखित श्लोक से प्रकट होती है। यथा. तीरथ वर नैमिष विख्याता

सत्ययुगे नैमिषारण्ये त्रेतायां च पुष्करे।
द्वापरे कुरूक्षेत्रे कलौ गंगा प्रवर्तते।।

सतयुग में स्वयंभूवमनु ने यही सपत्निक 23 हजार वर्ष तक तपस्या कर परमात्मा भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उन्हें ही पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वरदान प्राप्त किया तत्पश्चात् त्रेतायुग में वह भगवान श्रीराम अपने अंशो सहित अवतरित हुए

पद्पुराण के अनुसार. यथा.

स्वायंभवो मनुः पूर्वं द्वादशार्णमहामनुम्।
जजाप गोमती तीरे नैमिषे विमले शुभे।।
तेन वर्षसहस्त्रेण पूजितः कमलापतिः।
मत्तो वरं वृणीष्वेति तं प्राह भगवान हरिः।।

त्रेतायुग में भगवान श्री रामजी ने नैमिषायण्य में अवश्वमेघ यज्ञ किया। लोकपवाद दूर करने के लिए इसी पवित्र स्थान में परित्याक्ता माता सीता को पुनः परीक्षा को कहा गया। सतित्व की मर्यादा का मान रखते हुये माता सीता जिस स्थान पर समायी उसे जानकी कुण्ड के नाम से जाना जाता है। द्वापर में भगवान के 24 अवतारों मं से एक श्री बलराम जी ने भी नैमिषारण्यं की यात्रा कर इल्वल बल्वल नामक दैत्य का संहार कर तीर्थ एवं महर्षियों की महत्ता को बढ़ाया। इसी स्थान पर पुराण प्रवक्ता श्री सूत जी ने शौनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों को लोक कल्याण के लिए पुराण के इतिहास से सम्बन्धित कथाओं का श्रवण कराया। महर्षि पुलस्त्य ने नैमिषारणं के समस्त तीर्थों का फलदायक तीर्थ कहा है इसे श्राद्ध तीर्थ कहा गया है। यहाँ पर सम्पन्न पिण्ड श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है। पद्म. पुराण के अनुसार.

तीर्थन्तु नैमिषंनाम सर्वतीर्थ.फलप्रदम्।
.......यः प्रयाति सपूतात्मा नारायणपुरं ब्रजेत।।

कलयुग में धर्म का प्रवाह मन्द होते हुए भी वाणी रूप में सरस्वती धारा पुराण कथाओं के माध्यम से आज भी प्रवाहित हो रही है आज भी नैमिषारण्यं तीर्थ में आकर सरस्वती स्नान अर्थात् पुराण कथाओं का श्रवण करना मनुष्य की समग्र उन्नति के लिए अत्यन्त आवश्यक है इसके श्रवण मात्र से मानसिक क्लेश, काम, क्रोध, लोभ, मोह द्वारा उत्पन्न कष्टदायी वृत्तियों का समूल नाश होता है।

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