प्रथमं नैमिषं पुण्यं, चक्रतीर्थं च पुष्करम्।
अन्येषां चैव तीर्थानां संख्या नास्ति महीतले।।
कुरूक्षेत्रे तु यत्पुण्यं राहुग्रस्ते दिवाकरे।
तत्फलं लभते देवी चक्रतीर्थस्य मज्जनात्।।
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यह समिति आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80जी के अन्तर्गत आयकर मुक्त

नैमिषारण्य

नैमिषेऽनिमिषक्षेत्रे ऋषयः शौनकादयः।
सत्रं स्वर्गाय लोकाय सहस्त्रसममासत्।।

नैमिष अथवा नैमिषारण्य तीर्थ भारत वर्ष के प्रमुख तीर्थों में से एक तीर्थ है। यह भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के समीप जनपद सीतापुर में प्रसिद्ध गोमती नदी के तट पर स्थित है यह अठ्ठासी हजार ऋषियों की तपस्थली होने के कारण तपोभूमि के नाम से विख्यात है। आदिकाल में देवताओं की यज्ञ स्थली होने से इसे यज्ञ भूमि के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में इसे धर्मारण्यं कह कर भी सम्बोधित किया गया है।

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चक्रतीर्थ

सत्युग में 88000 महर्षियों ने विश्व कल्याण के लिए ब्रह्मा जी से तप, यज्ञ एवं अनुष्ठान आदि के लिए आपदाओं से मुक्त परम्.पवित्र भ्ूामि बताने की याचना की। ब्रह्माजी ने अत्यन्त प्रसन्न होकर चक्रदेव का आवाहन किया। तत्पश्चात् चक्रदेव ब्रह्माजी के मन से प्रकट हुए और ब्रह्माजी ने ऋषि.मुनियों से कहा इस चक्र की नेमि अर्थात् धूरि जहाँ पर शीर्ण ;प्रवेशद्ध होगी वही स्थान परम पवित्र होगा। सम्पूर्ण भूमण्डल की परिक्रमा के पश्चात् अन्त में चक्रदेव इस आरण्य ;वनद्ध में पधारे इसलिए नैमिषारण्य कहा गया। जहाँ अष्टकोणीय यज्ञकुण्ड के स्थान पर ठहरकर ब्रह्ममनोमय चक्रदेव जी ने कहा कि हे मुनिवरों यह स्थान परम पुनीत है जहाँ कुछ दूरी में गोमती जी बह रही है जो स्थान सभी आपदाओं से मुक्त है। यह स्थान पितरों को तृप्ति देने वाला है यहाँ पर किये गये तप, यज्ञ, श्राद्ध एवं अनुष्ठान आदि पुण्यों का फल कई गुना अधिक हो जाता है। यह स्थान समस्त आपदाओं से मुक्त था और आदि गंगा गोमती के निकट स्थित था इतना कह कर चक्रदेव अष्टकोणीय यज्ञकुण्ड में प्रवेश कर छः पाताल तोड़ते हुये ज्योंही सातवे पाताल में प्रवेश किया त्योंही पृथ्वी से भयंकर जलधारा निकलने लगी भयभीत होकर सभी ऋषि.मुनि पुनः ब्रह्माजी के पास गये ब्रह्माजी ने ऋषियों से आदि शक्ति लालितादेवी की प्रार्थना करने को कहा तदोपरान्त आदिशक्ति मां लालिता जी ने चक्र देव को साढ़े छः पताल पर रोक दिया। महाभारत के अनुसार-

नैमिषे चक्र तीर्थेषु स्नात्वाभरत सत्तम्
सर्वव्याधि विनिर्मुक्तो ब्रह्मलोकं स गच्छति।।

इस पवित्र तीर्थ में स्नान करने से मनुष्यों की समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं एवं सभी पाप नष्ट हो जाते है। यहाँ पर स्नान करने से सम्पूर्ण शारीरिक व्याधियों का नाश होता है। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या अर्थात् सोमावती अमावस्या को यहाँ स्नान किया जाये तो मनोवांछित सिद्धि प्राप्त होती है तथा उसे गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

’संयुक्ता सोमवारेण अमावस्या भवेद्यदि।
चक्रतीर्थे नरः स्नात्वा सिद्धिं विन्दति तत्क्षणात्।

आदिशक्ति माँ ललिता देवी

आदिकाल से आदि शक्ति ललिता परमात्मा की परम्शक्ति होने के कारण ये आद्या नाम से जानी जाती हैं। यह शक्ति अनादिकाल से अपनी लीलाओं का विस्तार करती आ रही है। यह स्थान देवी के सिद्ध पीठों में एक सिद्ध पीठ है इन्हें भूवनेश्वरी, लिंगधारणी, चक्रेश्वरी नाम से भी जाना जाता है। जो लोग आदि गंगा गोमती व चक्रतीर्थ में स्नान के पश्चात् मां भगवती श्री ललिता देवी जी की पूजा अर्चना करते हैं उनकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।

ज्योतिष एवं वास्तु

अमित पाराशर
ज्योतिषाचार्य
- 9936101101, 9935173290

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सम्पर्क सूत्र - अमित पाराशर मो0 -
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